िबहार बाढ़ की चपेट में हैं। पहली बार नहीं एेसा नहीं हुअा है। कोसी पहले भी कहर बरपा चुकी है। इस बार रास्ता बदल िलया है। हुक्मरानोंं ने हवाई सवेॆॐण जरूरत कर िलया है, पर पानी कब तक उतरेगा और लोग कब तक यह अास लाए बैठे रहेंगे िक कोई नौका अाए और उन्हें बचा कर ले जाए। बाढ़ की िस्थ्त अचानक इतनी गंभीर तो हुई नहीं। चार िदन पहले मेरे एक िमॊ ने सूचना दी िक िबहार के उत्तरी इलाके पूरी तरह से बाढ़ की चपेट में अा चुके हैं करीब ७५ लाख लोग चपेट में हैं। मैंने उस िदन उसकी बात को गंभीरता से नहीं िलया।अाज जब पानी िसर के क्या घर से ऊपर से िनकल चुका है तो मेरे मन में यह बात अाई िक कैसे वहां फंसे लोग िजंदगी से जूझ रहे होंगे। यह बात वहीं समझ सकता है िजसने नजदीक से बाढ़ को झेला हो। मुझ जैसा पठार में रहनेवाला इनसान यह कतई नहीं समझ सकता िक बाढ़ की िवभीिषका क्या होती है। महीने तक पानी से िघरे रहने और दूर-दूर तक िसफॆ मटमैले पानी में जीवन की तलाश का क्या मोल है। बाढ़ की सूचना देते वक्त मेरे िमॊ की अांखे इस बात का थोड़ा सा एहसास करा रही थीं। पर पॊकार बन कर चीजों को तकॆ और तथ्य की तराजू में तोलने की अादत ने मुझे उसके सामने एक िनष्ठुर व्यिक्तत्व वाला व्यिक्त ही बना िदया। उसकी पीड़ा थी िक िदल्ली के अखबारों में खबरें उस तरह से नहीं अा पा रही हैं िजस तरह से अानी चािहए। मैंने उनसे कहा िक इस खबर में क्या स्टोरी बन रही है। यह खबर िदल्ली के अखबारों में नहीं िबकेगी। वह अखबारी दुिनया में नया है, इस कारण हो सकता है उसे मेरी बात बुरी लगी हो पर मैंने तो वही कहा जो बाजार का सच है। पर हां िजस िदन से िबहार के मुख्यमंॊी ने िदल्ली अाकर पऱधानमंॊी को ये बातें बताईं और पऱधानमंॊी नऔर सोिनया गांधी ने िबहार का दौरा कर िलया तो खबरें सुिखॆयों में अा गईं। खबर ही क्या कारुिणक कथाएं भी अाने लगीं िक कैसे लोग फंसे और चूड़ा खाकर िदन गुजार रहे हैं। एक हजार करोड़ की रािश तो दे दी गई पर लोगों को िमलेगा क्या? चूड़ा गुड़ या िफर सत्तू। इससे ज्यादा की तो मुझे उम्मीद नहीं। अापको हो बता दीिजए।