Friday, October 31, 2008

राज़ की नज़रों में कैसा भारत


कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत एक है। एक है एक है ।हम भी मानते और शायद आप भी मानते होंगे। अब जरा राज़ ठाकरे की नज़र में भविष्य के भारत पर नज़र डालते है।
महाराष्ट एक देश होगा। जहाँ की रास्ट्रीय भाषा मराठी होगी। वहां हिन्दी फिल्में नही बनेगी। हिन्दी बोलेंगे तो सज़ा मिलेगी.महाराष्ट में जाने की लिए वीसा की जरूररत होगी। प्रधानमंत्री राज ही होंगे। टाटा, अम्बानी सबको वहां से हटना होगा। राज़ की नज़रों में देश का अन्य हिस्सा इस प्रकर होगा।
ताजमहल सिर्फ़ उत्तर प्रदेश के लोग ही देख सकेंगे।
दिल्ली में प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति दिल्ली का ही होना चाहिए।
सरे पंजाबी पंजाब में रहेंगे।
झारखण्ड se लोहा दुसरे राज्य में नही जाएगा।
दक्षिण के राज्य अपने मसाले अपने पास ही रखेंगे।यू पी और बिहार अपने आनाजो को बहार नही भेजेंगे।
गणेश की पूजा अन्य राज़यों में प्रतिबंधित होगा।
कश्मीरीयों की मांगे राज़ की नज़रों में जायज होना चाहिये ,वे भी तो चाहते है है की दल झील पर उनका ही हक़ रहे। क्या ग़लत है। है न राज़ भाई साहब ..................................................

Thursday, October 2, 2008

इस मूितॆ के पऱायोजक हैं एयरटेल

सामुदाियक पूजा के बाद पूजा सेिलबऱेशन का रूप लेता जा रहा है। अब दुगाॆ पूजा को ही लें। घर-घर में मनाया जानेवाला यह त्योहार इतना वृहद रूप ले चुका है िक अब पूजा गौण चुकी है और इसकी जगह भव्यवता ने ले ली है। हर ओर इस बात का शोर है िक कहां िकतना अिधक खचॆ हुअा है। यह अब त्योहार न होकर सेिलबऱेशन बन गया है। रात भर होने वाले कायॆकरम और सज धज कर घूमने और मस्ती करने का एक मौका। पहले घर-घर में यह त्योहार मनाया जाता था। सागदी से। कोई शोर-गुल नहीं। िसफॆ भिक्त औऱ अाराधना। ठाकुरों की हवेिलयों के िनकलकर जब देवी दुगाॆ सावजिनन हुईं तो उसका एक अपना महत्व था। पर वह महत्व घटता चला गया। इसे भी बाजार ने हाईजैक कर िलया है। कहीं कोई पंडाल एयरटेल है, तो कोई वोडाफोन का। कहीं धुनष माकाॆ तेल पऱायोजक है तो कहीं कोलाकोला। वह िदन भी दूर नहीं जब शराब के िवग्यापन भी िदखने लगें। जैसे ही अाप पूजा पंडाल में दािखल होगें, तो देवी की मूितॆ के नीचे िलखा िमलेगा इस मूितॆ के पऱायोजक हैं मैक्डोवल या एेसा ही कुछ। पंडाल के रंग िबरंगे कपड़ों पर भद्दे-भद्दे बैनर लगे िमलेंगे।
कोलकाता में तो इस साल दुगाॆ पूजा ने कारपोरेट रूप अिख्तयार कर िलया है। वहां के कुछ पूजा पंडालों के मैनेजमेंट का िजम्मा मल्टीनेशनल कंपिनयों ने ले िलया है। धीरे-धीरे दुगाॆ पूजा के रूप में िकतना पिरवतॆन हुअा है यह तो हमारी अांखों के सामने है, पर एेसा ही चलता रहा तो अागे क्या होगा कोई नहीं बता सकता।

Wednesday, October 1, 2008

सामुदायिक पूजा का नया चलन

एेसा पहली बार नहीं हुअा है िक िकसी धािमॆक स्थल पर कुचलकर लोगों की मौत हुई हो। हम भले ही पऱशासन को कोस लें, तरह-तरह की दलीलें दे लें। धािमॆक स्थलों पर अत्यिधक भीड़ जुटने के पीछे लोगों की बदल रही मानिसकता को नजरअंदाज नहीं िकया जा सकता है। िहंदू धमॆ में सामुदाियक पूजा की अवधारणा नहीं रही है। इसी कारण हर िहंदू के घर में पूजा स्थल होता है और अांगन में तुलसी का पौधा। अांगन में तुलसी का पौधा भले ही हो पर छोटा सा ही सही पूजा का स्थान तो अवश्य होता है। बदलते समय के साथ िहंदू धमॆ में भी सामुदाियक पूजा के पऱित लोगों का रुझान बढ़ता जा रहा है।
मुझे याद है िक पहले हमारे पूरे शहर से चार लोग माता वैष्णो देवी के दशॆन करने जाते थे, उस वक्त लोग कहा करते थे,िक फलां व्यिक्त वैष्णो देवी गए थे, वह भी िकसी खास मकसद से। अब सुनने में अाता है िक पूरा मुहल्ला ही उठ कर वैष्णो देवी गया है। यह फकॆ धीरे-धीरे अाया है। इस देश में पहले मुसलमानों का अाकरणमण हुअा, उन्होंने राज िकया और उसके बाद अंगऱेजों ने यहां शासन िकया। मुसिलम और ईसाई दोनों धमोॆं में सामुदाियक पूजा यानी कम्युिनटी इबादत या पऱेयर की अवधारणा है। मुसिलम समुदाय के लोग हर िदन में पाच बार मसिजद जाकर नमाज पढ़ते है। उनकी यह परंपरा है। उसी तरह ईसाई भी हर रिववार को चचॆ जाते हैं। यह ईश्वर के पऱित अास्था का उनका तरीका है। इसके िलए उन्होंने अपनी अपनी व्यवस्थाएं कर रखीं हैं। िहंदू धमॆ में एेसी कोई व्यवस्था नहीं थी। हर घर मंिदर और पत्थर देवता के रूप में पूजे जाते हैं। धीरे-धीरे अवधारणाएं बदलने लगीं। अास्था का भी धऱुवीकरण होने लगा। इसी धऱुवीकरण के कारण कुछ मंिदर और धािमॆक स्थलों को वह दजाॆ पऱाप्त हो गया मानो जो वहां गया नहीं उसका जीवन बेकार। बात यहां तक तो समझ में अाती है पर इसके अागे जो िवकृितयां अाईं उसने अास्था और धमॆ को बाजार के करीब ला िदया। जैसे ही अाप िकसी बहुत पिवतऱ या जागृत मंिदर की सीिढ़यां चढ़ते हैं, वैसे ही अापको एहसास होगा िक अापकी अास्था का ध्यान केंिदऱत करने के कई कारक वहां अापका इंतजार कर रहे हैं। पहली सीढ़ी चढते ही अापको यह डर सताने लगेगा िक अापका चप्पल या जूता कोई चुरा ले। इसके िलए अलग व्यवस्था। छोटे-छोटे बच्चे से लेकर युवा तक इस पुनीत कायॆ में अापका सहयोग करते हैं। दूसरी सीढ़ी पर पऱसाद का बाजार। और जब अाप मंिदर में अपना पऱसाद चढ़ाएंगे तो पुजारी की दिक्षणा। यहां भी क्लास का ख्याल रखा जाता है। कोई वीअाईपी होता , तो कोई वीवीअाईपी। सामान्य कैटेगरी की तो कोई पूछ ही नहीं। चामंडा देवी मंिदर में भी एेसी ही कोई ्ाशंका जताई जा रही है।
इस िवषय पर दूसरी पोस्ट जल्द ही।