Thursday, August 28, 2008

बाढ़, खबर और पैसा

िबहार बाढ़ की चपेट में हैं। पहली बार नहीं एेसा नहीं हुअा है। कोसी पहले भी कहर बरपा चुकी है। इस बार रास्ता बदल िलया है। हुक्मरानोंं ने हवाई सवेॆॐण जरूरत कर िलया है, पर पानी कब तक उतरेगा और लोग कब तक यह अास लाए बैठे रहेंगे िक कोई नौका अाए और उन्हें बचा कर ले जाए। बाढ़ की िस्थ्त अचानक इतनी गंभीर तो हुई नहीं। चार िदन पहले मेरे एक िमॊ ने सूचना दी िक िबहार के उत्तरी इलाके पूरी तरह से बाढ़ की चपेट में अा चुके हैं करीब ७५ लाख लोग चपेट में हैं। मैंने उस िदन उसकी बात को गंभीरता से नहीं िलया।अाज जब पानी िसर के क्या घर से ऊपर से िनकल चुका है तो मेरे मन में यह बात अाई िक कैसे वहां फंसे लोग िजंदगी से जूझ रहे होंगे। यह बात वहीं समझ सकता है िजसने नजदीक से बाढ़ को झेला हो। मुझ जैसा पठार में रहनेवाला इनसान यह कतई नहीं समझ सकता िक बाढ़ की िवभीिषका क्या होती है। महीने तक पानी से िघरे रहने और दूर-दूर तक िसफॆ मटमैले पानी में जीवन की तलाश का क्या मोल है। बाढ़ की सूचना देते वक्त मेरे िमॊ की अांखे इस बात का थोड़ा सा एहसास करा रही थीं। पर पॊकार बन कर चीजों को तकॆ और तथ्य की तराजू में तोलने की अादत ने मुझे उसके सामने एक िनष्ठुर व्यिक्तत्व वाला व्यिक्त ही बना िदया। उसकी पीड़ा थी िक िदल्ली के अखबारों में खबरें उस तरह से नहीं अा पा रही हैं िजस तरह से अानी चािहए। मैंने उनसे कहा िक इस खबर में क्या स्टोरी बन रही है। यह खबर िदल्ली के अखबारों में नहीं िबकेगी। वह अखबारी दुिनया में नया है, इस कारण हो सकता है उसे मेरी बात बुरी लगी हो पर मैंने तो वही कहा जो बाजार का सच है। पर हां िजस िदन से िबहार के मुख्यमंॊी ने िदल्ली अाकर पऱधानमंॊी को ये बातें बताईं और पऱधानमंॊी नऔर सोिनया गांधी ने िबहार का दौरा कर िलया तो खबरें सुिखॆयों में अा गईं। खबर ही क्या कारुिणक कथाएं भी अाने लगीं िक कैसे लोग फंसे और चूड़ा खाकर िदन गुजार रहे हैं। एक हजार करोड़ की रािश तो दे दी गई पर लोगों को िमलेगा क्या? चूड़ा गुड़ या िफर सत्तू। इससे ज्यादा की तो मुझे उम्मीद नहीं। अापको हो बता दीिजए।

1 comment:

  1. Bihar me badh ke halat par media ki khamoshi ki baat me kuch bhi jhooth nahi hai. Ise yun bhi samjha ja sakta hai ki Bihar me aai ye badh lagbhag harek aane wali koshi nadi ke baadh se bilkul hi alag thi. Is baat pani ki chapet me aane wale adhikatam ilake aise the jahaan ke logon ne kabhi socha bhi nahi tha ki kabhi ve badh ke shikar bhi ho sakte hain. Darasal is dafa pani badhne ke dabaw me aakar kosi nadi ne kuch door tak ka apna rasta hi badal diya aur jin gavon men kabhi barish tak ka pani nahi rukta tha ve nadi ki mukhya dhara ke pas aa gaye. Aab isase upji tabahi ka andaja lagana shayad kisi ke liye aasan hoga. Aise me desh ki rajdhani se sanchalit media ki chuppi dekhne layak thi. Jahan desh ko is vibhisika se do char karane ki zaroorat thi wahan media ka saara dhyan Singur aur Tata se lekar Kashmir aur Amarnaath ki khabron par laga hua tha. Beech beech me kisi bezaroori cheez ki tarah Badh ke halat ko yaad kar liye jaane ko hi paryapt nahi mana ja sakta. Ye Bihar hi nahi balki pure desh ke saamne ek chunauti hai jise sahi roop me aur sahi waqt par sabke saamne na lakar Media ne ek gair jimmedarana udaharan pesh kiya hai. Bazar aur corporatization, beshak vyapak asar wali cheezen hain lekin janata ko inke aatank se bachae rakhna bas media ke hi bas me hai. Aur isliye ye media ki jimmedari bhi hai.

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