Tuesday, September 23, 2008

लूट की मानिसकता

िबहार में बाढ़ का पानी भले ही अब औऱ न चढ़ रहा हो, पर समस्याएं तो बढ़ ही रही हैं। जो कभी जमीन के मािलक थे अाज बेघर बंजारा की िजंदगी िबता रहे हैं। बाढ़ से जुड़ी एक बड़ी िदलचस्प घटना का िजकऱ मैं यहां करना चाहूंगा। मेरे एक िरश्तेदार हैं। कॉलेज में जीव िवग्यान पढ़ाते हैं। उन्होंने ही यह वाक्या सुनाया था। वह कॉलेज से िसलिसले में उत्तर िबहार गए थे। िजस पिरिचत के घऱ वह ठहरे थे, वह िबहार सरकार के मुलािजम थे। उस वक्त भी बाढ़ अाई थी और राहत कायॆ जोरों पर चला था। अचानक उन्होंने देखा िक एक कमरे में कुछ पैकेट के ढेर लगे थे। उन्हें िजग्यासा हुई तो उन्होंने देखा िक वह बाढ़ राहत सामगऱी थी। िजसमें चूड़ा, गुड़़, चना जैसे कुछ खाद्य पदाथॆ थे। उन्होंने उनके बेटे से पूछा िक यह सब क्या है, तो उनके बेटे ने उन्हें इशारा कर कहा िक बाद में बताऊंगा। खैर जब वह िवदा लेने को हुए तो उन्हें िगफ्ट के तौर पर वही कुछ पैकेट िदया गया।
चूंक वह पैकेट खुले बाजार मे िबक नहीं सकता। उस पर बाढ़ राहत सामगऱी िलखा होता है और उसमें कुछ खास सामगऱी भी नहीं होती। कई पैकेट को खोल कर जमा भी िकया जाए तो उसका बाजार मूल्य बहुत ज्यादा नहीं होता। घर के लोग उस सामगऱी को खाते भी नहीं। उन पैकेटों को िसफॆ इसिलए घर ले अाया गया िक कोई अाए तो उन्हें िगफ्ट िकया जा सके। यह मानिसकता िकतनी ओछी है। अपने इस्तेमाल का न होते हुए भी उसके सही हकदारों को वंिचत करते हुए अिधकारी कमॆचारी बाढ़ राहत सामगऱी के पैकेट घर ले अाते हैं। जरा सोिचए िक उनपैकेटों से िकतनों की जानें बच गई होतीं। िकतने लोगों को अासरा हुअा होता। िकतने बच्चों को रात भर भूख से िबलिबलाना नहीं पड़ता। पर यह सोचने के िलए संवेदनशीलता की जरूरत है। यही संवेदना तो मरती जा रही है। बाढ़, भूकंप जैसी पऱाकृितक अापदाएं भी अामदनी का जिरया बन जाती हैं। भले ही िबहार को केंदऱ सरकार की तरफ से १००० करोड़ की रािश िमली है, हजारों स्वंयसेवी संगठनों और अन्य संस्थाओं से भी सहयोग िमला है, पर देखनेवाली बात है िक यह िकतने लोगों तक पहुंचता है।

3 comments:

  1. आपकी पोस्ट विचारने योग्य है।
    अभिनंदन।

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  2. acha likha hai. aur kiya halchal hai dost.

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  3. सुंदर सार्थक सटीक आलेख बधाई
    आपको मेरे चिट्ठे पर पधारने हेतु बहुत बहुत धन्यबाद . कृपया अपना आगमन नियमित बनाए रखें

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