Wednesday, September 24, 2008

िसफॆ इंकलाब िजंदाबाद करने से कुछ हािसल नहीं होगा

मजदूरों और मािलकों का नाता सिदयों से एेसा ही चला अा रहा है िजसमें िपसता मजदूर ही है। भले ही सबसे ज्यादा नुसकान मजदूरों को उठाना पड़ता है पर िफर भी बीच-बीच में एेसी घटनाएं होती हैं जो यह सोचने पर मजबूर करती हैं िक अािखर इसका अंत कहां है। गऱेटर नोएडा में बहुराष्टीय कंपनी के सीईओ और मजदूरों के संघषॆ में हुई मौत के बाद एक बार िफर से यह बहस का मुद्दा बना है िक मजदूरों और मािलकों के बीच का िरश्ता कैसा हो। इस पूरी घटना में सबसे अहम पक्ष श्रम मंतऱी का बयान है। घटना के बारे मे उनकी पहली पऱितकऱया से उद्योग जगत में खलबली मच गई। दूसरे िदन उन्हीं के दबाव में माफी मांगना यह िसद्ध करता है िक अाप चाहे लाख ईच्छा रखते हों या िफर अापके िदलों में मजदूरों के िलए सहानुभूित हो अाप कुछ नहीं कर सकते। ग्लोबलाइजेशन के दौर में बाजार ही सबसे बड़ी ताकत है। कुछेक अपवादों को छोड़ दें तो कहीं एेसा नहीं िदखाई देता िक मजदूरों के िहतों की बात होती हो। श्रम मंतऱी की लाचारी से यह तो साफ है िक सरकार इस मामले में कुछ करने नहीं जा रही है।
यहां कुछ सवाल लािजमी हैं। अािखर क्यों कोई उद्योगपित अपना पैसा लगाकर धमाॆथॆ कायॆ करे? यह बात सभी को समझनी होगी िक कोई भी उद्योगपित खैरात बांटने के िलए उद्योग नहीं लगाता और बाजार में पऱितस्पधाॆ इतनी अिधक है िक कोई खैरात बांटकर िटक भी नहीं सकता। िकसी भी उद्योगपित को खाने के लाले नहीं होते, दो जून की रोटी के बारे में मजदूरों को ही सोचना पड़ता है। इस कॉन्टऱास्ट के बीच यह सोचना होगा िक अािखर वह कौन सा फैक्टर है जो इस गितरोध को दूर कर सकता है। चाहे िसंगूर हो या िफर झारखंड की कोयल-कारो पिरयोजना। सबके पीछे यही कॉन्िफल्क्ट काम करता है। यह कॉन्िफल्क्ट िसफॆ मजदूरों और मािलकों के बीच नहीं है। यह एक ही कंपनी में काम करनेवाले ऊंचे पदों पर अासीन अिधकािरयों और कमॆचािरयों के बीच है। िजनकी सैलरी में एक शून्य का अंतर होता है। वह शून्य ही सारे फसाद की जड़ है। इसी शून्य से कोई िवचार उभरे को ही इस समस्या का कोई समाधान िनकल सकता है। िसफॆ इंकलाब िजंदाबाद करने से कुछ हािसल नहीं होगा, इसके िलए जरूरत है िक नए िसरे से कोई हल िनकाला जाए।

1 comment:

  1. sathi aapki bhawna bhut achhi hai magar kisi niskarsh par nahi pahunchti. behtar ho aap apne confusion se bahar aaien. pahli bat yo ye ki koi bhi udyogpati upkar karne ke liye nahi majduron ka khun chusne investment karta hai,to kya usse nirvirodh tarike se aisa karne diya jai? nischit rup nahi! markx ne kaha tha duniya ke majduron ak ho,magar globlaisation ke nam par ak ho gaye punjipati! sathi yah sanghars jari rahega inqlab tak.ladenge aur jitenge.-umashankar singh

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